समय की वैदिक गणना - भारतीय ज्ञान बनाम विज्ञान | वैदिक ज्ञान
समय की गणना - भारतीय ज्ञान बनाम विज्ञान - वैदिक ज्ञान |
मैंने अपने पिछले लेख (क्या है? अधिक मास, मलमास या पुरुषोत्तममास) में बताया था कि कैसे भारतीय ज्योतिष विज्ञान दिन, मास एवं वर्ष की कितनी सटीक व्याख्या करता है। और हमें वो बहुत अदभुद भी लगा। आज मैं उसी लेख को आगे लेकर जाऊँगा और आपके साथ नई जानकारियाँ साझा करूँगा।
हमने (जिन्हे भारतीय ज्ञान के अध्ययन में रूचि है) कई शब्द बहुत सुने होंगे जैसे कि कल्प, युग, ब्रह्म वर्ष। पर क्या आपको पता है? ये सभी समय की गणना के लिए उपयोग किये जाने वाले मात्रक है। और जब आप इस लेख में आगे बढ़ेंगे तो देखेंगे कि कैसे भारतीय ज्ञानियों ने समय कि गणना परमाणु स्तर से लेकर ब्रह्मांडीय स्तर तक करने में सक्षम थे। उन्होंने हर स्तर तक के मानक तय किये हुए थे। आगे बढ़ने से पहले, मैं चाहूँगा की आप एक बार ऋग्वेद के इस मंत्र को पढ़े।
Ved | RigVed | Mandal | 1 | Sookta | 164 | Mantra | 48
द्वाद॑श प्र॒धय॑श्च॒क्रमेकं॒ त्रीणि॒ नभ्या॑नि॒ क उ॒ तच्चि॑केत ।
तस्मि॑न्त्सा॒कं त्रि॑श॒ता न श॒ङ्कवो॑ऽर्पि॒ताः ष॒ष्टिर्न च॑लाच॒लासः॑ ॥
अनुवाद - हे मनुष्यो ! जिस रथ में (त्रिशता) तीनसौ (शङ्कवः) बाँधनेवाली कीलों के (न) समान (साकम्) साथ (अर्पिताः) लगाई हुई (षष्टिः) साठ कीलों (न) जैसी कीलें जो कि (चलाचलासः) चल-अचल अर्थात् चलती और न चलती और (तस्मिन्) उसमें (एकम्) एक (चक्रम्) पहिया जैसा गोल चक्कर (द्वादश) बारह (प्रधयः) पहिओं की हालें अर्थात् हाल लगे हुए पहिये और (त्रीणि) तीन (नभ्यानि) पहिओं की बीच की नाभियों में उत्तमता में ठहरनेवाली धुरी स्थापित की हों (तत्) उसको (कः) कौन (उ) तर्क-वितर्क से (चिकेत) जाने ॥ ४८ ॥
ऊपर मंत्र का जो अनुवाद दिया गया है। उसे पढ़ कर आपको लगेगा कि इसमें किसी रथ की बात की जा रही है। जिसमे एक पहिया है और उस पहिये में ३०० व् ६० कीले लगी है और १२ हाल लगे हैं और पहिये के बीच तीन नाभियों हैं जिसमें धुरी लगी है।
पर यही वेदों की जटिलता है। इनमे अलंकारों का उच्चतम प्रयोग किया है। क्योंकि अगर मैं कहता हूँ कि इसमें मनुष्य के एक संपूर्ण वर्ष की व्याख्या की गई है तो आपको कुछ अटपटा लगेगा। परन्तु जब आप इसे दोबारा पड़ेंगे और थोड़ा ध्यान देंगे तो समझ में आएगा की यहाँ पर एक चक्र (पहिये) की बात की जा रही है जिसमे ३६० कीले लगी है। और हम सभी यह जानते हैं कि कोई भी चक्र(गोला) ३६० डिग्री के कोण से बनता है या ये कहें कि चक्र में ३६० कोण होते है। दूसरी बात यह कि समय कि प्रकृति चक्रिय है। इससे हमे ये समझ में आता है कि जिस ऋषि ने इस मंत्र की रचना की उन्हें ज्यामितिक व् त्रिकोणमिती का ज्ञान था।
अब सवाल यह हैं कि १२ हाल क्या हैं ? यह १२ हाल और कुछ नहीं बल्कि १२ राशियाँ है। जिनके आधार पर भारतीय पञ्चाङ्ग के मासों की रचना हुई है। अब एक प्रश्न यह भी है कि तो इस चक्र या पहिये में जिन तीन नाभियों की बात की जा रही है जिसमें धुरी लगी हैं वह क्या है? तो इसका जबाब अब तक आपके मन में आ भी चुका होगा। और अगर नहीं भी आया है तो यहाँ बता देते हैं वह तीन नाभियां और कुछ नहीं अपितु भारतीय पञ्चाङ्ग के आधार यानि सूर्य,चंद्र व् पृथ्वी है। जो अपनी धुरी पर प्रति छण गतिशील हैं।
अब हम यहाँ थोड़ी सी चर्चा उन ऋषि की भी कर लेते हैं जिन्होंने इस मन्त्र की रचना की थी। वह थे ऋषि दुर्गातमस। दुर्गातमस, ऋषि परिवारों में सबसे पुराने अंगिरसा ऋषियों में से एक थे, और ऋषि भारद्वाज के भाई के रूप में माना जाता है, जो ऋग्वेद के छठे मंडल के द्रष्टा हैं। वह राजा भरत के प्रतिष्ठित पुरोहित या मुख्य पुजारी थे, जो भूमि के सबसे पुराने राजाओं में से एक थे। और राजा भरत के नाम पर ही हमारे देश (देश का पारंपरिक नाम) का नाम भारत रखा गया।
अब इससे आप ये तो समझ चुके होंगे कि जिन ऋषि ने यह मन्त्र लिखा वो आज से लगभग ५००० वर्ष पूर्व जन्मे थे। और उनको भी इन खगोलीय घटनाओं की जानकारी थी। है ना आश्चर्यजनक!
अब आगे चलते है। ऊपर के लेख में सभी बातें इसी लिए बताई हैं कि हम यह समझ सके कि हमारे भारत देश में कितना ज्ञान और कितने पुराने समय से चला आ रहा है। जो समय के साथ साथ छीण होता जा रहा है। अब मैं आपको बताता हूँ कि कैसे इस ज्ञान भण्डार में समय के मात्रक परमाणु के स्तर से लेकर ब्रह्मण्ड के स्तर तक उपलब्ध है।
नीचे दिए गये चित्र के माध्यम से समझते है। इस चित्र में मैंने वैदिक समय के मात्रक की वैज्ञानिक समय के मात्रक से तुलना करते हुए उनके कुछ मान रखे है, वेदों के अनुसार समय की गणना कुछ इस तरह है :
[1 महाकल्प = 3.15x10^5 एयॉन = 3.15x10^14 साल 1 परार्ध = 3.63x10^6 गांगेय वर्ष = 1.58x10^14 साल 1 ब्रह्म वर्ष = 3.15x10^6 मैग्नम = 3.15x10^12 साल 1 ब्रह्मा अहोरात्र = 8.76x10^6 मिलेनियम = 8.76x10^9 साल 1 कल्प = 4.38 एयॉन = 4.38x10^9 साल 1 महायुग = 4.38 मैग्नम = 4.38x10^6 साल 1 दिव्य वर्ष = 365 साल = 1.31x10^5 दिन 1 दिव्य अहोरात्र = 1.01 साल = 365 दिन 1 अहोरात्र = 1.01 दिन = 24.33 घंटे 1 प्रहर = 3 घंटे = 180 मिनट 1 मुहूर्त = 0.8 घंटे = 48 मिनट 1 घट्यः = 0.4 घंटे = 24 मिनट 1 कालः = 0.8 मिनट = 48 सेकंड 1 काष्ठा = 1.6 सेकंड = 1600 मिलीसेकंड 1 निमेष = 88.89 मिलीसेकंड = 8.89x10^4 माइक्रोसेकंड 1 तत्परः = 2.96 मिलीसेकंड = 2.96x10^3 माइक्रोसेकंड 1 त्रुटि = 29.63 माइक्रोसेकंड = 2.96x10^4 नैनोसेकंड 1 तॄसरेणु = 9.88 माइक्रोसेकंड = 9.88x10^3 नैनोसेकंड 1 ब्रह्माण्डीय = 1.646 माइक्रोसेकंड = 1646.09 नैनोसेकंड]
अगर अपने ऊपर दिखाये गए चित्र को देखा और समझने का प्रयास किया तो अपने देखा कि समय के निम्नतम स्तर (परमाणु) से लेकर उच्चतम स्तर (ब्रह्मांडीय) तक समय की गणना करने के लिए मानक एवं मात्रक उपलब्ध है। और मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपको ऊपर दी गई जानकारी महत्वपूर्ण एवं आश्चर्यजनक लगी होगी। और साथ ही आपको अपने भारतीय होने और भारत के ज्ञान की धरोहर पर गर्व हुआ होगा। अगर आपको लेख अच्छा लगा हो तो अपने विचार कमैंट्स में अवश्य लिखे और लेख को अपने मित्रों से साझा अवश्य करे।
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