क्या हम हर समय अपने अतीत में जीते है ? अगर विज्ञान की आँखों से देखें तो…. हाँ
क्या हम हर समय अपने अतीत में जीते है ? अगर विज्ञान की आँखों से देखें तो…. हाँ |
क्या हम हर समय अपने अतीत में जीते है ? अगर विज्ञान की आँखों से देखें तो…. हाँ
हम हर समय अपने अतीत में ही जी रहे होते है। ये सुनने में जितना विचित्र लगता है। वास्तव में उतना ही सत्य है। अगर हम आज के आधुनिक विज्ञान की माने तो ये एक दम सत्य है। हम अपने जीवन का एक एक पल अतीत का जीते है। ये बात आम व्यक्ति के लिए आसानी से समझने लायक शायद नही है। परंतु अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के लिए ये प्रत्येक दिन की बात है। इसे समझने के लिए बस साधारण विज्ञान के ज्ञान की जरूरत हैं। हम सभी ने बचपन मे विज्ञान का एक पाठ " प्रकाश " तो अवश्य ही पढ़ा होगा। यदि अपने नही भी पढ़ा तो कोई बात नही, आज हम यहां इसे आसान भाषा मे समझने का प्रयास करेंगे।
विज्ञान के सिद्धांत के अनुसार हमे कोई भी वस्तु या घटना प्रकाश की वजह से दिखाई देती है। यानी जब प्रकाश की किरण किसी वस्तु से टकराने के बाद हमारे आंखों के रेटिना पर गिरती है तब हमें वह वस्तु दिखाई देती है। और अगर प्रकाश उस वस्तु के आर पार निकल जाए तो वह वस्तु हमे नही दिखाई देती। तो इस बात से यह समझ आता है कि प्रकाश का हमारे देखने ना देखने से सीधा संबंध है।
चलिए अब हम ये समझने का प्रयास करते है कि क्या सच में हम अपने अतीत में जीते है?
जैसे कि हमने देखा कि प्रकाश का महत्व हमें कुछ भी देखने के लिए कितना अधिक है। अब अब ये भाई जानते है कि संसार में सभी वस्तु कि अपनी एक गति है उसी प्रकार प्रकाश कि भी अपनी गति है। विज्ञान और गणित के अनुसार प्रकाश की गति लगभग 300000 किमी / सेकंड है। इसका तात्पर्य ये है कि प्रकाश कि किरण किसी भी वस्तु से टकरा कर लगभग 300000 किमी / सेकंड की रफ्तार से हमारे रेटीना से टकराती है।
ये गति इतनी अधिक है कि इसमें सामान्य सी विविधता की मनुष्य अपनी आंखों से नहीं देख सकता। परन्तु हम अपने कथन को समझने के लिए इसकी गति में परिवर्तन करके देखेंगे।
अब हम मान लेते है कि प्रकाश की गति ३० किमी/घंटा है। मैं जानता हूं कि ये बोहोत काम है परन्तु सिद्धांत को समझने के लिए हम मान लेते है। चलिए अब हम एक रेलवे स्टेशन पर खड़े हो कर एक ट्रेन को देखने का प्रयास कर रहे है। इस ट्रेन की गति भी ३०किमी/घंटा है। तो इस स्थिति में हम ट्रेन को उसके वास्तविक जगह पर ही देखेंगे। क्योंकि प्रकाश और ट्रेन की गति समान है।
अब एक और ट्रेन वहां से गुजरती है। जिसकी रफ्तार ६० किमी/घंटा है। इस स्थिति में ऐसा होगा कि जब प्रकाश की किरण उस ट्रेन से टकरा कर हमारे पास पहुँचेगी और हमे ट्रेन दिखाई देखी तब तक ट्रेन उस जगह से दोगुनी आगे जा चुकी होगी। इसका तात्पर्य ये हुआ के हम वास्तविक ट्रेन को नहीं अपितु उसके प्रतिबिंब को देख रहे होंगे। जोकि भूतकाल में बना था।
मतलब हम भूतकाल की घटना को देख रहे है वर्तमान की नहीं। और ये हमारे साथ हर समय होता है। परन्तु प्रकाश की गति अत्यधिक होने की दशा में यह समयांतर बहुत ज्यादा काम हो जाता है और हमें वो घटना वर्तमान की तरह लगती है। जबकि हम सिर्फ भूतकाल में बने एक प्रतिबिंब को देखते है।
इस तरह से हम ये कह सकते है कि हम हर समय अपने भूतकाल में ही रहते है।
मैं आशा करता हूं कि आपको ये सिद्धांत दुनिया को एक नए तरह से देखने में सहायता करेगा। और अगर आपको यह विश्लेषण अच्छा लगा हो तो कृपया इसे दूसरों तक भी पहुंचाएं तथा आप इस सिद्धांत के बारे में क्या सोचते है? कॉमेंट करके अवश्य बताएं।
विनीत कुमार सारस्वत
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