इतिहास बनाम मिथक - वे कैसे भिन्न हैं और इतिहास कैसे पौराणिक कथाओं में बदल जाता है?
इतिहास बनाम मिथक - वे कैसे भिन्न हैं और इतिहास कैसे पौराणिक कथाओं में बदल जाता है? |
इतिहास बनाम मिथक - वे कैसे भिन्न हैं और इतिहास कैसे पौराणिक कथाओं में बदल जाता है? |
तब मेरे मन ये प्रश्न आया कि इतने बड़े विश्वविद्यालय में भारत की प्राचीन सभ्यताओं में से एक पर विरोध क्यों हो रहा है।
जब मैंने इसके बारे में पढ़ा, तो पता चला कि जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं, उनके अनुसार सरस्वती नदी एक मिथक है।जिसके आधार पर उन्होंने इस सभ्यता को ही काल्पनिक और मिथक बता दिया।
तब मैंने निर्णय किया की में भी इसके बारे में खोजबीन करता हूँ।
सबसे पहले, मैंने पता करने का प्रयास किया के सरस्वती नदी के बारे में सबसे पुराना उल्लेख कहाँ किया है। इसे खोजते हुए मेरी खोज ऋग्वेद में जाकर समाप्त हुई। जैसा की संपूर्ण विश्व मानता है कि ऋग्वेद प्राचीनतम ज्ञान संग्रह में से एक है। और इसकी सत्यता पर किसी को संदेह नहीं है।
यदि आप ऋग्वेद के मंडल १० के ७५ वें सूक्त में जायेंगे तो देखेंगे की यहाँ नदियों की देव के रूप में उपासना करते हुए कई मंत्रो को रचा गया है। और इसके पाँचवे मंत्र में सरस्वती नदी का उल्लेख बड़ी स्पष्टता से किया गया है, जो कुछ इस प्रकार है :
इ॒मं मे॑ गङ्गे यमुने सरस्वति॒ शुतु॑द्रि॒ स्तोमं॑ सचता॒ परु॒ष्ण्या ।
अ॒सि॒क्न्या म॑रुद्वृधे वि॒तस्त॒यार्जी॑कीये शृणु॒ह्या सु॒षोम॑या ॥
अनुवाद :
हे गंगा, यमुना, सरस्वती , शुतुद्रि , परुष्णी, असिक्नी, के साथ रहने वाली मरुद्वृधा, वितस्ता , सुषोमा और आर्जीकिया नदियों ! तुम मेरी स्तुति को सुनो और स्वीकार करो।
उपरोक्त भजन में १० नदियों की स्तुति की गई है। इनका नाम गंगा, यमुना, सरस्वती, शुतुद्री, परुष्णी, असिकनी, मरुद्वरुधा, वितस्ता, सुषोमा और अर्जीकिया है। जिस प्रकार गंगा और यमुना मिथक नदियाँ नहीं है उसी प्रकार सरस्वती नदी भी मिथक नहीं है। कालान्तर में इसका भौतिक अस्तित्व नहीं दिखता परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि यह एक काल्पनिक नदी है।
शोधकर्ता इस बात का प्रमाण देते हैं कि सरस्वती बारहमासी थी और उच्च हिमालय से 7,000 ईसा पूर्व और 2,500 ईसा पूर्व के मध्य में बहा करती थी। मैंने संदर्भ के लिए इस लेख के अंत में कुछ लिंक दिए हैं।
परन्तु इसके पश्चात मेरे मन में एक और प्रश्न ने जन्म लिया कि;
इतिहास बनाम पुराण - वे कैसे भिन्न हैं?
इस विषय पर चर्चा करने से पहले, यह समझना आवश्यक है कि इतिहास और पौराणिक कथाओं में क्या अंतर है।
एक संज्ञा के रूप में, इतिहास और पौराणिक कथाओं के बीच का अंतर कुछ इस तरह से बताया जाता है कि इतिहास अतीत की घटनाओं का समुच्चय है जबकि पौराणिक कथा लोगों के मिथकों का संग्रह है, जो लोगों के इतिहास, देवताओं, पूर्वजों और नायकों की उत्पत्ति से संबंधित है।
अब अगर ऊपर लिखे हुए वाक्य (जो लोगों के इतिहास, देवताओं, पूर्वजों और नायकों की उत्पत्ति से संबंधित है।) को सावधानीपूर्वक पढ़ा जाए तो पौराणिक कथायें इतिहास भी होती हैं। फिर प्रश्न ये उठता है कि अगर पौराणिक कथायें इतिहास ही है तो इनमें अंतर क्या हैं ? यदि आप इस पर थोड़ा और शोध करेंगे तो पाएंगे कि दोनों में कुछ अंतर अवश्य है।
मिथक और इतिहास अतीत को देखने के वैकल्पिक तरीकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। मिथक को परिभाषित करने की तुलना में इतिहास को परिभाषित करना शायद ही आसान है, लेकिन एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण में घटनाओं के लिए कालानुक्रमिक रूपरेखा की स्थापना और प्रतिद्वंद्वी परंपराओं की तुलना करना और एक सुसंगत खाता बनाने के लिए तुलना करना शामिल है। बाद की प्रक्रिया, विशेष रूप से, लेखन की उपस्थिति की आवश्यकता होती है ताकि अतीत के परस्पर विरोधी संस्करणों को रिकॉर्ड और मूल्यांकन किया जा सके। जहाँ यह सब कुछ किया जा सकता है, उसे इतिहास कहा जाता हैं।
सरल भाषा में, यदि अतीत में घटी किसी घटना का कोई प्रमाण या साक्ष्य किसी लिखित या किसी स्मारक या किसी ढांचे के रूप में दिया जा सके और उसके घटना क्रम की नियमितता को सिद्ध किया जा सके तो उस घटना को इतिहास कहा जाता है।
वहीं यदि किसी घटना का कोई साक्ष्य न हो और वह सिर्फ मौखिक रूप में ही प्रचलित है और जन समुदाय में उस घटना के लिए विश्वास और अविश्वास दोनों की ही भावनाएं हो तो उसे काल्पनिक कथा या मिथक मना जाता है। क्योंकि मौखिक कथाओं का साक्ष्य न होने की दशा में उसे सिद्ध नहीं किया जा सकता है। और जैसा कि हम जानते है, मौखिक कहानियों में समय के साथ साथ विकृति भी आ जाती है जिससे इसकी विश्वसनीयता पर संदेह होना स्वाभाविक हो जाता है और उस घटना को काल्पनिक घटना कहा जाता है।
आइए, अब समझते है कि "कोई भी ऐतिहासिक घटना, स्थान या बात एक मिथक में कैसे बदल जाती है?"
इस प्रश्न के उत्तर के लिए मैंने कई अन्य लेखों और स्थानों पर पढ़ा, और उन का उद्धरण इस लेख में है। किसी भी इतिहास की घटना का मिथक में बदलना चरणों में होता है। इसे स्पष्ट रूप से समझने के लिए निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से इसे समझना होगा।
१. कालक्रम का टूटना
काल क्रम का टूटना सबसे महत्वपूर्ण चरण है। अगर सबकुछ नियमित रूप से व्यवस्थित रहता है तो उसमे विकृति एवं त्रुटि का समाहित होना अत्यंत दुस्कर होता है। इसीलिए कालक्रम का टूटना अति आवश्यक हो जाता है। इसके लिए समाज में अवांछित उपद्रव या जान समुदाय में आपसी भेदभाव व् द्रोह की भावना बड़ा कर या किसी बाहरी शक्ति के द्वारा आक्रमण करके, उस समय के कालक्रम को जानने वाले और समझने वाले जन समुदाय को समाप्त करके, उस समाज के लोगों के नर संहार द्वारा अव्यवस्थित किया गया हो।
२. साक्ष्यों का विनाश
साक्ष्यों के विनाश भौगोलिक परिवर्तन, प्राकृतिक आपदा या आक्रमण जैसे विभिन्न कारणों से हो सकता है। इसके अलावा, समय के साथ स्थानों स्मारकों के नाम का परिवर्तन भी एक कारण है। जब किसी राष्ट्र या समुदाय का कालक्रम टूट जाए या अव्यवस्थित हो जाए तो उस समय इतिहास से जुड़े साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ का अवसर उत्पन्न हो जाता है। जिससे उन साक्ष्यों को मिटाया जाए या उनमें विकृतियां डाली जाए। अथवा साक्ष्यों को बदल कर उनके स्थान पर नए साक्ष्य रखें जाए या रखे ही ना जाएं। दोनों ही प्रकार से इतिहास से जुड़े साक्ष्यों का विनाश किया जा सकता है। यह इतिहास से संबंधित साक्ष्य की अस्वीकृति को अधिकार देता है।
क्योंकि जब साक्ष्य नहीं होता है, तो उनकी तुलना व विश्लेषण उस कालक्रम किसी और घटना से नहीं किया जा सकेगा और समय के साथ उस घटना की विश्वसनीयता भी कम होती जाएगी। या साक्ष्यों में इस तरह से बदलाव किया जाए की उस साक्ष्य की तुलना उसी समय के किसी और साक्ष्य से तुलना करने पर घटनाएँ मेल ही न खाए या अत्यंत काल्पनिक लगने लगे। जिससे उस साक्ष्य की विश्वसनीयता ही समाप्त हो जाती है।
यही काम स्मारकों और भवनों के साथ किया जा सकता है या तो उन्हें तोड़ दिया जाए या उन्हें किसी और भवन में परिवर्तित कर दिया जाए। इन सभी स्थितियों में उस घटना पर विश्वास कम या समाप्त हो सकता है।
३. समाज में दुष्प्रचार
जब उपरोक्त दोनों चरण किसी समाज मे हो चुके है या चल रहे हो तो तीसरा चरण होता है, समाज में उस घटना के विषय में भ्रांतिया फैलाई जाए या उनका दुष्प्रचार किया जाए। यह करने के लिए उस समाज के मध्य से कुछ विद्वान, प्रभावशाली परन्तु लोभी व्यक्ति स्वयं के किसी लोभ के कारण उस घटना का भ्रांतियों के साथ प्रचार कर देते है तथा साथ ही कुछ असामाजिक तत्व समाज मे विभाजन को बढ़ाने के लिए उस घटना पर अविश्वास भी समाज के मध्य उत्पन्न कर देते हैं।
४. अशिक्षा का प्रसार
यहाँ अशिक्षा प्रसार से तात्पर्य यह नहीं है कि शिक्षा न दी जाए, अपितु गलत शिक्षा दी जाने से है। इससे समाज को यह तो प्रतीत होता है कि वो शिक्षित है परन्तु उसे यह प्रतीत नहीं होता कि वह अज्ञानी है। जिससे उस घटना को अपनी अज्ञानता और दूषित शिक्षा के मोह में आकर अतीत की उस घटना पर अविश्वास रखते है। इसके कारण वे उस घटना को काल्पनिक मानते हैं और आने वाली पीढ़ी को भी एक किंवदंती कथा की तरह बताते है। इसके कारण इतिहास की वह घटना एक किंवदंती का रूप ले लेती है।
यदि हम ध्यान दे कि अगर किसी समाज मे उपरोक्त चारों चरण हो चुके है या चल रहे हो तो हम देखेंगे कि उस समाज के इतिहास की सीमित उपलब्धता ही उस समाज के व्यक्तियों में रह जाती है। और उस समाज की अधिकतर घटनाएं केवल मिथक कथायें बन कर रह जाती है। जिससे उस समाज मे अपने इतिहास के प्रति गर्व की भावना ही समाप्त हो जाती है। जिसका लाभ उस राष्ट्र व समाज के शत्रु उस समाज के विरुद्ध करते है। और अब मैं उन समाचार के लेखों के साथ संबंधित कर सकता हूं।
अब यहां एक और सवाल उठता है कि इसका क्या असर होता है?
इसका उत्तर बहुत सीधा है। इससे उस राष्ट्र और समाज के शत्रु को उनके विरुद्ध लाभ मिलता है।
सार:
ऊपर लिखे गए लेख का तात्पर्य यह नही है कि सभी पौराणिक कथायें इतिहास ही होती है। परन्तु कुछ कथायें इतिहास भी होती है। जिन्हें कई बार पौराणिक बना कर कहा जाता है। हमे, अपने विवेकानुसार किसी भी घटना विश्लेषण व शोध करना चाहिए, उसे पौराणिक या ऐतिहासिक घटना मानने व आगे उसका प्रचार करने से पहले। क्योंकि यदि हम ऐसा नही करते तो यह समाज मे रोष व दुर्भावना का कारण बन जाता है। और यह किसी भी सभ्य समाज के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है।
याद रखें, “यदि आप एक मिथक या पौराणिक कथा के रूप में अपने इतिहास को बुलाएंगे या बढ़ावा देंगे, तो ध्यान रखें कि समाज और आपके राष्ट्र का दुश्मन यह सुनिश्चित करेगा कि यह मिथक में बदल जाए।”
लेख़क: विनीत कुमार सारस्वत
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अधिक जानकारी और शोध पत्र:
हरियाणा में सरस्वती नदी और वैदिक सरस्वती नदी के साथ इसका संबंध - उपग्रह चित्रों और ज़मीनी जानकारी के आधार पर एकीकृत अध्ययन
लिंक: https://link.springer.com/article/10.1007/s12594-009-0084-y
ग्रेट इंडियन डेजर्ट में सरस्वती नदी का खोया अपना अस्तित्व, पाठ्यक्रम: लैंडसैट इमेजरी से नया साक्ष्य
लिंक: https://www.jstor.org/stable/633213?seq=1
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Nice topic.
ReplyDeleteInteresting one!!
ReplyDeleteBahut hi gahan adhyayan ka sar hai ye lekh.
ReplyDeleteManthan se nikla alankar hai ye lekh.
Jeevan ke binduo ko jodne ka prayas hai
Itihas ke panno ka shringar hai ye lekh